Thursday, 13 January 2022

हिंदी साहित्य में ‘थर्ड जेंडर विमर्श’ विशेष संदर्भ : ‘मैं पायल’ (उपन्यास) / हर्षिता द्विवेदी

हिंदी साहित्य में किन्नर या थर्ड-जेंडर समुदाय को लेकर बहुत कम लिखा गया हैकिन्नर-जीवन पर हिंदी साहित्य में आत्म-कथाओं या ऐसे किसी साहित्य का अभाव है| ‘मैं पायल’ हिंदी का पहला जीवनीपरक उपन्यास हैजिसे यथार्थ जीवन में किन्नर गुरु पायल सिंह ने जिया हैएक किन्नर शिशु के बचपन से लेकर उसके जीवन के तमाम पक्षों को इस उपन्यास के माध्यम से प्रस्तुत किया गया हैभारत समेत पूरी दुनिया में किन्नरों की संख्या लाखों में हैलेकिन फिर भी साहित्यसमाजभाषासंस्कृतिसंविधानसत्तासम्पत्ति और जीवन जीने के तमाम अधिकारों से उन्हें सदियों से बेदखल किया जाता रहा हैरोजगार और शिक्षा का आभाव हैजिसके कारण उन्हें सार्वजानिक स्थलों पर भीख मांगनी पड़ती हैतालियाँ पीटकर नेग वसूलने होते हैंइससे भी जरूरत पूरी न हो तो वेश्यावृत्तिके ग़लीज दलदल में उतर जाना होता हैसार्वजनिक स्थलों पर उन्हें हेय दृष्टि से देखा जाता हैसामान्य लोगों के लिए बने अस्पतालों में उन्हें इलाज़ नहीं मिलतास्कूलों में दाखिला नहीं मिलतासरकारी-ग़ैरसरकारी जगहों पर रोजगार नहीं मिलताहम उन्हें अश्लीलता की दृष्टि से देखने के आदी हैंबचपन में ही परिवार और समाज से विस्थापित होकर नर्क भोगते लाखों किन्नरों का प्रतिनिधित्व करती है यह कृति।

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